ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष हो तो उसके जीवन में कई तरह की परेशानियां आती हैं। काल सर्प दोष के जातक बनने पर भी काम बिगड़ जाता है। ज्योतिषी रूपेश चौबे के अनुसार, काल सर्प दोष कुंडली के 12 घरों में राहु और केतु की उपस्थिति के क्रम में 12 प्रकार के काल सर्प योग होते हैं। जानिए 12 कालसर्प योग और उनके प्रभाव।

Kaalsarp yog

1- अनंत कालसर्प योग- लग्न में राहु और सप्तम में केतु हो तो यह योग बनता है, इससे जातक कभी शांत नहीं रहता, झूठ बहुत बोलता है और साजिशों में बहुत बार है

 2-कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भााव में हो और केतु अष्टम में हो तो यह योग बनता है, इस योग में पुत्र और जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता के सुख में कमी और हर कदम पर अपमान।

3- वासुकी कालसर्प योग- तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो और उसके बीच में सभी ग्रह हों तो यह योग बनता है, इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम की कमी, रुकावट आती है भाग्य, नौकरी। मुझे विदेश प्रवास में भुगतना पड़ रहा है।

4- शंखपाल कालसर्प योग- यदि राहु नवम में और केतु तीसरे भाव में हो तो यह योग बनता है, जातक भाग्यहीन होकर अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं पाता और बार-बार नौकरी में निलम्बित हो जाता है।

5- पद्म कालसर्प योग- पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख की कमी होती है और वृद्धावस्था में शत्रु बहुत होते हैं, सट्टेबाजी में भारी नुकसान

6- महापद्म कालसर्प योग- यदि छठे भाव में राहु और व्यय भाव में केतु हो तो यह योग बनता है, इसमें पत्नी के वियोग, आय की हानि, चरित्र हनन की पीड़ा भोगनी पड़ती है।

7-तक्षक कालसर्प योग- यदि सप्तम में राहु और लग्न में केतु हो तो यह योग बनता है, ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति का नाश होता है, पत्नी को सुख नहीं मिलता, फिर से जेल की यात्रा करनी पड़ती है और फिर व।

8-कर्कोटक कालसर्प योग- यदि अष्टम भाव में राहु और धन भाव में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में जातक को भाग्य से परेशानी होती है, नौकरी की संभावनाएं कम होती हैं, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति उपलब्ध नहीं है। और तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।

9- शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख में हो और केतु कर्म में हो तो यह योग बनता है ऐसे व्यक्ति के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव आता है और स्वास्थ्य खराब रहता है.

10- घातक कालसर्प योग- यदि दशम भाव में राहु हो और केतु सुख में हो तो यह योग बनता है, ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता अलग हो जाते हैं।

11- विषधर काल सर्प योग- राहु शुभ में हो और केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है, ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाइयों से विवाद होता है, हृदय रोग होता है और शरीर जर्जर हो जाता है।

12- शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में हो और केतु रोग में हो तो यह योग बनता है, यदि ऐसा व्यक्ति शत्रुओं से पीड़ित हो, तो शरीर सुखी नहीं रहेगा, आंखें खराब होंगी और दरबार का चक्कर लगाता रहेगा। .

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